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शेर
बीस बरस से इक तारे पर मन की जोत जगाता हूँ
दीवाली की रात को तू भी कोई दिया जलाया कर
माजिद-अल-बाक़री
शेर
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है
दाग़ देहलवी
शेर
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो