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शेर
बस-कि हूँ 'ग़ालिब' असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा
मू-ए-आतिश दीदा है हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
लैलतुल-क़द्र है हर शब उसे हर रोज़ है ईद
जिस ने मय-ख़ाने में माह-ए-रमज़ाँ देखा है
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
शेर
क्यूँ इशारा है उफ़ुक़ पर आज किस की दीद है
अलविदा'अ माह-ए-रमज़ाँ वो हिलाल-ए-ईद है
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
शेर
निस्बत फिर उस से क्या मह-ए-दाग़ी को दीजिए
सारे बदन में जिस के न हो एक तिल कहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
हम रिंद-ए-परेशाँ हैं माह-ए-रमज़ाँ है
चमकी हुई इन रोज़ों में वाइ'ज़ की दुकाँ है
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
शब भर शब-ए-विसाल रहा चाँदनी का लुत्फ़
सोया लिपट के वो मह-ए-ताबाँ तमाम रात