aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ".nod"
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चलेचले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
किसी को साल-ए-नौ की क्या मुबारकबाद दी जाएकैलन्डर के बदलने से मुक़द्दर कब बदलता है
माह-ए-नौ देखने तुम छत पे न जाना हरगिज़शहर में ईद की तारीख़ बदल जाएगी
ये किस ने फ़ोन पे दी साल-ए-नौ की तहनियत मुझ कोतमन्ना रक़्स करती है तख़य्युल गुनगुनाता है
अस्र-ए-नौ मुझ को निगाहों मैं छुपा कर रख लेएक मिटती हुई तहज़ीब का सरमाया हूँ
दुल्हन बनी हुई हैं राहेंजश्न मनाओ साल-ए-नौ के
तेरे बिन घड़ियाँ गिनी हैं रात दिननौ बरस ग्यारह महीने सात दिन
लगा रहा हूँ मज़ामीन-ऐ-नौ के फिर अम्बारख़बर करो मेरे ख़िरमन के ख़ोशा-चीनों को
अब के बार मिल के यूँ साल-ए-नौ मनाएँगेरंजिशें भुला कर हम नफ़रतें मिटाएँगे
पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदाजहाँ वो चाहिए मुझ को कि हो अभी नौ-ख़ेज़
ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख करख़ुद हम भी सोचते हैं कि अब तक कहाँ रहे
साल-ए-नौ आता है तो महफ़ूज़ कर लेता हूँ मैंकुछ पुराने से कैलन्डर ज़ेहन की दीवार पर
गुलशन से कोई फूल मयस्सर न जब हुआतितली ने राखी बाँध दी काँटे की नोक पर
बहार-ए-नौ की फिर है आमद आमदचमन उजड़ा कोई फिर हम-नफ़स क्या
मैं कि एक मेहनत-कश मैं कि तीरगी-दुश्मनसुब्ह-ए-नौ इबारत है मेरे मुस्कुराने से
सख़्त बीवी को शिकायत है जवान-ए-नौ सेरेल चलती नहीं गिर जाता है पहले सिगनल
उस ने हमारे ज़ख़्म का कुछ यूँ किया इलाजमरहम भी गर लगाया तो काँटों की नोक से
कुछ नौ-जवान शहर से आए हैं लौट करअब दाव पर लगी हुई इज़्ज़त है गाँव की
किस की होली जश्न-ए-नौ-रोज़ी है आजसुर्ख़ मय से साक़िया दस्तार रंग
सर-ब-कफ़ हिन्द के जाँ-बाज़-ए-वतन लड़ते हैंतेग़-ए-नौ ले सफ़-ए-दुश्मन में घुसे पड़ते हैं
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