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शेर
सभी इनआम नित पाते हैं ऐ शीरीं-दहन तुझ से
कभू तू एक बोसे से हमारा मुँह भी मीठा कर
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग
देखते ही देखते कितने बदल जाते हैं लोग
हिमायत अली शाएर
शेर
तू जो जाता है वहीं नित दौड़ दौड़ ऐ 'मुसहफ़ी'
और क्या दुनिया के सारे ख़ूबसूरत मर गए
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
नित जिन आँखों में रहे था तेरी सूरत का ख़याल
अब वो आँखें सूरत-ए-आईना हैं हैरत-परस्त
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
राह-ए-हक़ में खेल जाँ-बाज़ी है ओ ज़ाहिर-परस्त
क्या तमाशा दार पर मंसूर ने नट का किया