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शेर
सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बा'द
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बा'द
सय्यद ग़ुलाम मोहम्मद मस्त कलकत्तवी
शेर
अकबर इलाहाबादी
शेर
अकबर इलाहाबादी
शेर
ऐ हिना रंग-ए-मोहब्बत तो है मुझ में भी निहाँ
तेरे धोके में कोई पीस न डाले मुझ को