aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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मैं ने जो कचकचा कर कल उन की रान काटीतो उन ने किस मज़े से मेरी ज़बान काटी
रेहन सरशारी-फ़ज़ा के हैंआज के बा'द हम हवा के हैं
किस शेर की आमद है कि रन काँप रहा हैरुस्तम का जिगर ज़ेर-ए-कफ़न काँप रहा है
सुब्ह सवेरे रन पड़ना है और घमसान का रनरातों रात चला जाए जिस को जाना है
ऊँची इमारतें तो बड़ी शानदार हैंलेकिन यहाँ तो रेन-बसेरे थे क्या हुए
मसाफ़-ए-जीस्त में वो रन पड़ा है आज के दिनन मैं तुम्हारी तमन्ना हूँ और न तुम मेरे
खाइए ये ज़हर कब तक खाए जाती है ये ज़ीस्तऐ अजल कब तक रहेंगे रहन-ए-आब-ओ-दाना हम
रहन-ए-शराब-ख़ाना किया शैख़ हैफ़ हैजो पैरहन बनाया था एहराम के लिए
ज़हर सी रात लहू और ये घमसान का रनदीदा-ए-तर से क़यामत नहीं देखी जाती
'ज़हूर' करना है रन मुबद्दल-ब-किश्त मुझ कोमैं अपनी तलवार कूट कर हल बना रहा हूँ
सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्तीइबादत बर्क़ की करता हूँ और अफ़्सोस हासिल का
फिर शाह ने बै'अत ही तलब की नहीं वर्नाजो रन में हुआ था वही दरबार में होता
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