aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर देतन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती हैमाँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मैं तकिए पर सितारे बो रहा हूँजनम-दिन है अकेला रो रहा हूँ
वक़्त ख़ुश ख़ुश काटने का मशवरा देते हुएरो पड़ा वो आप मुझ को हौसला देते हुए
ये एक पेड़ है आ इस से मिल के रो लें हमयहाँ से तेरे मिरे रास्ते बदलते हैं
धूप निकली है बारिशों के ब'अदवो अभी रो के मुस्कुराए हैं
अजब महफ़िल है सब इक दूसरे पर हँस रहे हैंअजब तंहाई है ख़ल्वत की ख़ल्वत रो रही है
यार सब जम्अ हुए रात की ख़ामोशी मेंकोई रो कर तो कोई बाल बना कर आया
रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लेंजिन को मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया
ऐ शम्अ तेरी उम्र-ए-तबीई है एक रातहँस कर गुज़ार या इसे रो कर गुज़ार दे
जम गया ख़ूँ कफ़-ए-क़ातिल पे तिरा 'मीर' ज़ि-बसउन ने रो रो दिया कल हाथ को धोते धोते
मर मर के अगर शाम तो रो रो के सहर कीयूँ ज़िंदगी हम ने तिरी दूरी में बसर की
हाल मुझ ग़म-ज़दा का जिस जिस नेजब सुना होगा रो दिया होगा
वो ख़ुश हुआ कि उस को ख़सारा नहीं हुआमैं रो रहा था मेरा सहारा चला गया
वो भी शायद रो पड़े वीरान काग़ज़ देख करमैं ने उस को आख़िरी ख़त में लिखा कुछ भी नहीं
सुनने वाले रो दिए सुन कर मरीज़-ए-ग़म का हालदेखने वाले तरस खा कर दुआ देने लगे
हम हैं असीर-ए-ज़ब्त इजाज़त नहीं हमेंरो पा रहे हैं आप बधाई है रोइए
खुल के रो लूँ तो ज़रा जी सँभलेमुस्कुराना ही मसर्रत तो नहीं
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँदयानी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया
रो पड़ी रात सिमट कर मिरे दस्ताने मेंचाँद को दूर कहीं खो दिया वीराने में
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