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शेर
मुद्दतों आँखें वज़ू करती रहीं अश्कों से
तब कहीं जा के तिरी दीद के क़ाबिल हुआ मैं
इरशाद ख़ान सिकंदर
शेर
ये मय-ख़ाना है मय-ख़ाना तक़द्दुस उस का लाज़िम है
यहाँ जो भी क़दम रखना हमेशा बा-वज़ू रखना
आतिश बहावलपुरी
शेर
भला क्या ता'ना दूँ ज़ुहहाद को ज़ुहद-ए-रियाई का
पढ़ी है मैं ने मस्जिद में नमाज़-ए-बे-वज़ू बरसों