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शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएँगे
राजेन्द्र कृष्ण
शेर
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई
बशीर बद्र
शेर
कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए
न लहू मिरे ही जिगर में था न तुम्हारी ज़ुल्फ़ सियाह थी
अहमद मुश्ताक़
शेर
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
किसी की ज़ुल्फ़ के सौदे में रात की है बसर
किसी के रुख़ के तसव्वुर में दिन तमाम किया