aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "Daaro.n"
यूँ तो मुमकिन नहीं दुश्मन मिरे सर पर पहुँचेपहरे-दारों में कोई आँख झपक जाता है
बे-दारों की दुनिया कभी लुटती नहीं 'दौराँ'इक शम्अ लिए तुम भी यहाँ जागते रहना
इन समझ-दारों में कोई तो मिरी बात सुनेइन समझ-दारों में इक शख़्स तो पागल निकले
क्यूँ माँग रहे हो किसी बारिश की दुआएँतुम अपने शिकस्ता दर-ओ-दीवार तो देखो
वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात में रंगइसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ
हमला है चार सू दर-ओ-दीवार-ए-शहर कासब जंगलों को शहर के अंदर समेट लो
अच्छा हुआ कि सब दर-ओ-दीवार गिर पड़ेअब रौशनी तो है मिरे घर में हवा तो है
दर-ओ-दीवार पे शक्लें सी बनाने आईफिर ये बारिश मिरी तंहाई चुराने आई
दर-ओ-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैंख़ुश रहो अहल-ए-वतन हम तो सफ़र करते हैं
बुतों को पूजने वालों को क्यूँ इल्ज़ाम देते होडरो उस से कि जिस ने उन को इस क़ाबिल बनाया है
जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरेऐ मकाँ बोल कहाँ अब वो मकीं रहता है
ऐ मिरे घर की फ़ज़ाओं से गुरेज़ाँ महताबअपने घर के दर-ओ-दीवार को कैसे छोड़ूँ
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बामये कौन गया मेरे बराबर से निकल कर
उट्ठो मिरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दोकाख़-ए-उमारा के दर-ओ-दीवार हिला दो
शफ़क़ से हैं दर-ओ-दीवार ज़र्द शाम-ओ-सहरहुआ है लखनऊ इस रहगुज़र में पीलीभीत
न इंतिज़ार करो इन का ऐ अज़ा-दारोशहीद जाते हैं जन्नत को घर नहीं आते
शेल्फ़ पे उल्टा कर के रख दो और बिसरा दोगुल-दानों में फूल सजाओ ख़्वाब का क्या है
ज़िंदगी भर दर-ओ-दीवार सजाए जाएँतब कहीं जा के मकीनों पे मकाँ खुलते हैं
बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिएकोई हम-साया न हो और पासबाँ कोई न हो
उजाड़ घर में ये ख़ुशबू कहाँ से आई हैकोई तो है दर-ओ-दीवार के अलावा भी
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