aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "Daraanaa"
क्या क्या दिलों का ख़ौफ़ छुपाना पड़ा हमेंख़ुद डर गए तो सब को डराना पड़ा हमें
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिनदो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
तर-दामनी पे शैख़ हमारी न जाइयोदामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें
न गोर-ए-सिकंदर न है क़ब्र-ए-दारामिटे नामियों के निशाँ कैसे कैसे
मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहेकि दाना ख़ाक में मिल कर गुल-ओ-गुलज़ार होता है
हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थेबे-सबब हुआ 'ग़ालिब' दुश्मन आसमाँ अपना
सुनेगा कौन मेरी चाक-दामानी का अफ़्सानायहाँ सब अपने अपने पैरहन की बात करते हैं
हम सब आईना-दर-आईना-दर-आईना हैंक्या ख़बर कौन कहाँ किस की तरफ़ देखता है
शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ रोज़-ए-वसलत चू उम्र कोताहसखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ
बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदोबहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने
उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ मेंलो आप अपने दाम में सय्याद आ गया
दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र मेंमैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था
सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगाये आग वो है जिस को दबाया न जाएगा
मौत बर-हक़ है तो फिर मौत से डरना कैसाएक हिजरत ही तो है नक़्ल-ए-मकानी ही तो है
मिरी नज़र में गए मौसमों के रंग भी हैंजो आने वाले हैं उन मौसमों से डरना क्या
अपनी ही ज़ात के महबस में समाने से उठादर्द एहसास का सीने में दबाने से उठा
फ़ाएदा क्या सोच आख़िर तू भी दाना है 'असद'दोस्ती नादाँ की है जी का ज़ियाँ हो जाएगा
ब'अद मुद्दत के ये ऐ 'दाग़' समझ में आयावही दाना है कहा जिस ने न माना दिल का
गर्मी से मुज़्तरिब था ज़माना ज़मीन परभुन जाता था जो गिरता था दाना ज़मीन पर
हमें जब अपना तआ'रुफ़ कराना पड़ता हैन जाने कितने दुखों को दबाना पड़ता है
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