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शेर
जल्द ख़ू अपनी बदल वर्ना कोई कर के तिलिस्म
आ के दिल अपना तिरे दिल से बदल जाऊँगा
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
मेरे मरने की ख़बर सुन कर लगा कहने वो शोख़
दिल ही दिल में अपने कुछ कुछ सोच कर अच्छा हुआ
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
दिल-ए-वहशी को ख़्वाहिश है तुम्हारे दर पे आने की
दिवाना है व-लेकिन बात करता है ठिकाने की
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
दिल जिगर की मिरे पूछे है ख़बर क्या है ऐ यार
नोक-ए-मिज़्गाँ पे ज़रा देख नुमूदार है क्या
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
हशमत-ए-दुनिया की कुछ दिल में हवस बाक़ी नहीं
इश्क़ की दौलत से हैं ऐसे ही आली-जाह हम
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
दिल की क्या पूछे है इक क़तरा-ए-ख़ूँ था हमदम
सो ग़म-ए-इश्क़ ने आते ही उसे नोश किया
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
शायद उसी का ज़िक्र हो यारो मैं इस लिए
सुनता हूँ गोश-ए-दिल से हर इक मर्द-ओ-ज़न की बात
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
छोड़ कर तस्बीह ली ज़ुन्नार उस बुत के लिए
थे तो अहल-ए-दीं पर इस दिल ने बरहमन कर दिया
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
क़हर थीं दर-पर्दा शब मज्लिस में उस की शोख़ियाँ
ले गया दिल सब के वो और सब से शरमाता रहा