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शेर
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
उस्तुख़्वाँ-बंदी-ए-अल्फ़ाज़ का आलम तू देख
अहल-ए-मअ'नी की जुदा होवे है तक़रीर का डोल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से
कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से
जलील ’आली’
शेर
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता