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शेर
बाम-ए-फ़लक पे गर वो उड़ाता नहीं पतंग
ख़ुर्शीद ओ माह डोर के फिर किस की गोले हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं