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शेर
मैं दीवाना सही लेकिन वो ख़ुश-क़िस्मत हूँ ऐ 'महशर'
कि दुनिया की ज़बाँ पर आ गया है आज नाम अपना
महशर इनायती
शेर
जिन्हें हासिल है तेरा क़ुर्ब ख़ुश-क़िस्मत सही लेकिन
तेरी हसरत लिए मर जाने वाले और होते हैं
हरी चंद अख़्तर
शेर
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
घर फूँक तमाशा देख चुके अब जंगल जंगल रोना है
आले रज़ा रज़ा
शेर
ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को
सो मैं कुछ ग़म बरा-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब उठा लाई