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शेर
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर
अल्लामा इक़बाल
शेर
सुनो मैं ख़ूँ को अपने साथ ले आया हूँ और बाक़ी
चले आते हैं उठते बैठते लख़्त-ए-जिगर पीछे