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शेर
तल्ख़ ओ शीरीं बे-तकल्लुफ़ जिस को पीना आ गया
मय-कशो पीना तो पीना उस को जीना आ गया
मोहम्मद हसन मोहसिन
शेर
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है
इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
शेर
फ़ितरत का अगर शोर-ए-हसीं ग़ौर से सुनिए
फिर अस्ल मोहब्बत के हैं हक़दार परिंदे
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
शेर
ये मो'जिज़ा है मोहब्बत में सुर्ख़-रूई का
भरे जहान में मुझ बे-हुनर के चर्चे हैं
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
शेर
हँसा करते हैं अक्सर लोग दीवानों की बातों पर
जहाँ वाले नहीं समझे मोहब्बत की ज़बाँ शायद
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
शेर
शब-ए-वस्ल आज वो ताकीद करते हैं मोहब्बत से
अभी सो रहने दो कुछ रात गुज़रे तो जगा लेना
पीर शेर मोहम्मद आजिज़
शेर
दिल ने चुपके से कहा कोशिश-ए-नाकाम के बाद
ज़हर ही दर्द-ए-मोहब्बत की दवा हो जैसे
सय्यद एहतिशाम हुसैन
शेर
हमारे आसमाँ का हर सितारा सब पे रौशन है
किसी ज़ख़्म-ए-मोहब्बत को निहाँ हम ने नहीं रक्खा
मशकूर हुसैन याद
शेर
रास आती ही नहीं जब प्यार की शिद्दत मुझे
इक कमी अपनी मोहब्बत में कहीं रक्खूँगा मैं
ग़ुलाम हुसैन साजिद
शेर
कभी मोहब्बत से बाज़ रहने का ध्यान आए तो सोचता हूँ
ये ज़हर इतने दिनों से मेरे वजूद में कैसे पल रहा है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
शेर
तर्क-ए-उल्फ़त से मोहब्बत का लिखा मिट न सका
वही अफ़्सुर्दगी-ए-शाम-ओ-सहर आज भी है