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शेर
चर्ख़ को मद्द-ए-नज़र है खींचना पूरी शबीह
माह-ए-नौ तो सिर्फ़ ख़ाका है तिरी तस्वीर का
जलील मानिकपूरी
शेर
दूँगा जवाब मैं भी बड़ी शद्द-ओ-मद के साथ
लिक्खा है उस ने मुझ को बड़े कर्र-ओ-फ़र्र से ख़त
नूह नारवी
शेर
ये जज़्र-ओ-मद है पादाश-ए-अमल इक दिन यक़ीनी है
न समझो ख़ून-ए-इंसाँ बह गया है राएगाँ हो कर
सिराज लखनवी
शेर
आईना-ए-रंगीन जिगर कुछ भी नहीं क्या
क्या हुस्न ही सब कुछ है नज़र कुछ भी नहीं क्या