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शेर
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
मानिंद-ए-ख़िज़्र जग में अकेला जिया तो क्या
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
गो सफ़ेदी मू की यूँ रौशन है जूँ आब-ए-हयात
लेकिन अपनी तो इसी ज़ुल्मात से थी ज़िंदगी
नज़ीर अकबराबादी
शेर
ख़िज़्र से कह दो कि आ कर देख लें आब-ए-हयात
धोए जाते हैं निचोड़े जाएँगे गेसू-ए-दोस्त
सय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी
शेर
अब दिलों में कोई गुंजाइश नहीं मिलती 'हयात'
बस किताबों में लिक्खा हर्फ़-ए-वफ़ा रह जाएगा
हयात लखनवी
शेर
जी उठूँ फिर कर अगर तू एक बोसा दे मुझे
चूसना लब का तिरे है मुझ को जूँ आब-ए-हयात
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
अब्दुल हमीद साक़ी
शेर
मर चुका मैं तो नहीं इस से मुझे कुछ हासिल
बरसे गिर पानी की जा आब-ए-बक़ा मेरे बा'द
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
मुझे जब मार ही डाला तो अब दोनों बराबर हैं
उड़ाओ ख़ाक सरसर बन के या बाद-ए-सबा बन कर