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शेर
सुल्ह-ए-कुल में मिरी गुज़रे है मोहब्बत के बीच
न तो तकरार है काफ़िर से न दीं-दार से बहस
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मिरी ज़िंदगी की ज़ीनत हुई आफ़त-ओ-बला से
मैं वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म हूँ जो सँवर गई हवा से
परवेज़ शाहिदी
शेर
हम-दिगर मोमिन को है हर बज़्म में तकफ़ीर-ए-जंग
नेक सुल्ह-ए-कुल है बद है बा-जवान-ओ-पीर-ए-जंग
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-तअल्लुक़ कर लो पर इक बात कहें
कल तुम इन को याद करोगे कल तुम इन्हें पुकारोगे
इब्न-ए-इंशा
शेर
उल्फ़त-ए-कूचा-ए-जानाँ ने किया ख़ाना-ख़राब
बरहमन दैर से का'बे से मुसलमाँ निकला