aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aaftab-o-maahtaab"
किन मंज़रों में मुझ को महकना था 'आफ़्ताब'किस रेगज़ार पर हूँ मैं आ कर खिला हुआ
वो चाँदनी में फिरते हैं घर घर ये शोर हैनिकला है आफ़्ताब शब-ए-माहताब में
सुबू में अक्स-ए-रुख़-ए-माहताब देखते हैंशराब पीते नहीं हम शराब देखते हैं
यूँ तो हम थे यूँही कुछ मिस्ल-ए-अनार-ओ-महताबजब हमें आग दिखाए तो तमाशा निकला
जलता है कि ख़ुर्शीद की इक रोटी हो तय्यारले शाम से ता-सुब्ह तनूर-ए-शब-ए-महताब
नींद आती नहीं तो सुबह तलकगर्द-ए-महताब का सफ़र देखो
'ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभीपीता हूँ रोज़-ए-अब्र ओ शब-ए-माहताब में
हम दिवानों को बस है पोशिश सेदामन-ए-दश्त ओ चादर-ए-महताब
क़ामत तिरी दलील क़यामत की हो गईकाम आफ़्ताब-ए-हश्र का रुख़्सार ने किया
मिरे लिए शब-ए-महताब इक क़यामत हैतुम आओ चाँद सितारों में दिल नहीं लगता
शामिल न होते हुस्न के जल्वे अगर 'कमाल'होता कहाँ ये नूर शब-ए-माहताब में
पी जिस क़दर मिले शब-ए-महताब में शराबइस बलग़मी-मिज़ाज को गर्मी ही रास है
हिजाब-ए-अब्र रुख़-ए-महताब से छलकावो अपने चेहरे से पर्दे को जब हटाने लगा
नादान कह रहे हैं जिसे आफ़्ताब-ए-हश्रज़र्रा है उस के रू-ए-दरख़्शाँ के सामने
मसनद-ए-शाही की हसरत हम फ़क़ीरों को नहींफ़र्श है घर में हमारे चादर-ए-महताब का
ऐसे में वो हों बाग़ हो साक़ी हो ऐ 'क़मर'लग जाएँ चार चाँद शब-ए-माहताब में
हिज्र की शब हाथ में ले कर चराग़-ए-माहताबढूँढता फिरता हूँ गर्दूं पर सहर मिलती नहीं
ख़ाक-ए-दिल से ही उठे अब के ग़ुबार-ए-महताबआसमाँ से कोई एलान नहीं होना है
अहबाब मुझ से क़त-ए-तअल्लुक़ करें 'जिगर'अब आफ़्ताब-ए-ज़ीस्त लब-ए-बाम आ गया
आफ़ताब-ए-गर्म से दस्त-ओ-गरेबाँ हो गएधूप की शिद्दत से साए जब परेशाँ हो गए
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