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शेर
कोई करता है जब हिन्दोस्तान की बात ए 'साहिल'
मुझे इक़बाल का क़ौमी तराना याद आता है
मोहम्मद अली साहिल
शेर
सैर-ए-साहिल कर चुके ऐ मौज-ए-साहिल सर न मार
तुझ से क्या बहलेंगे तूफ़ानों के बहलाए हुए
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
वो भला कैसे बताए कि ग़म-ए-हिज्र है क्या
जिस को आग़ोश-ए-मोहब्बत कभी हासिल न हुआ
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
शेर
'कैफ़' यूँ आग़ोश-ए-फ़न में ज़ेहन को नींद आ गई
जैसे माँ की गोद में बच्चा सिसक कर सो गया
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
शेर
सुरूर-ए-जाँ-फ़ज़ा देती है आग़ोश-ए-वतन सब को
कि जैसे भी हों बच्चे माँ को प्यारे एक जैसे हैं
सरफ़राज़ शाहिद
शेर
मुज़्तरिब हैं मौजें क्यूँ उठ रहे हैं तूफ़ाँ क्यूँ
क्या किसी सफ़ीने को आरज़ू-ए-साहिल है
अमीर क़ज़लबाश
शेर
सरक ऐ मौज सलामत तो रह-ए-साहिल ले
तुझ को क्या काम जो कश्ती मिरी तूफ़ान में है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
अबस ढूँडा किए हम ना-ख़ुदाओं को सफ़ीनों में
वो थे आसूदा-ए-साहिल मिले साहिल-नशीनों में
अब्दुल रहमान बज़्मी
शेर
हो कोई मौज-ए-तूफ़ाँ या हवा-ए-तुंद का झोंका
जो पहुँचा दे लब-ए-साहिल उसी को नाख़ुदा समझो