aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aamne"
अम्न-ए-आलम की ख़ातिरजंग युगों से जारी है
हिज्र में भी हम एक दूसरे केआमने सामने पड़े हुए थे
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसेतेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिनदो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब सेचेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत हैकभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वोऔर ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहासब अपने अपने चाहने वालों में खो गए
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिराकुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो हैक्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
वही फिर मुझे याद आने लगे हैंजिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
इतने घने बादल के पीछेकितना तन्हा होगा चाँद
तेरे आने की क्या उमीद मगरकैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं
ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों कोअपने अंदाज़ से गँवाने का
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देतेसवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगीतू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब थाआने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैंइतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं
मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देनायक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझहम अपने शहर में होते तो घर गए होते
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