aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aariyo.n"
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती हैआज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिलाजाने कितनी औरतों की बद-दुआएँ साथ हैं
शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदासरौनक़ें जितनी यहाँ हैं औरतों के दम से हैं
वतन की रेत ज़रा एड़ियाँ रगड़ने देमुझे यक़ीं है कि पानी यहीं से निकलेगा
मुझ को दुश्मन के इरादों पे भी प्यार आता हैतिरी उल्फ़त ने मोहब्बत मिरी आदत कर दी
सीरत न हो तो आरिज़-ओ-रुख़्सार सब ग़लतख़ुशबू उड़ी तो फूल फ़क़त रंग रह गया
ये औरतों में तवाइफ़ तो ढूँड लेती हैंतवाइफ़ों में इन्हें औरतें नहीं मिलतीं
आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़आज फिर तारों भरी रात ने दम तोड़ दिया
यहाँ की औरतों को इल्म की परवा नहीं बे-शकमगर ये शौहरों से अपने बे-परवा नहीं होतीं
आसमाँ अपने इरादों में मगन है लेकिनआदमी अपने ख़यालात लिए फिरता है
इक ज़िंदगी अमल के लिए भी नसीब होये ज़िंदगी तो नेक इरादों में कट गई
आरिज़ों को तिरे कँवल कहनाइतना आसाँ नहीं ग़ज़ल कहना
मसरूफ़ हम भी अंजुमन-आराइयों में थेघर जल रहा था लोग तमाशाइयों में थे
डूब जाते हैं उमीदों के सफ़ीने इस मेंमैं न मानूँगा कि आँसू है ज़रा सा पानी
जहाँ न अपने अज़ीज़ों की दीद होती हैज़मीन-ए-हिज्र पे भी कोई ईद होती है
मिट चले मेरी उमीदों की तरह हर्फ़ मगरआज तक तेरे ख़तों से तिरी ख़ुशबू न गई
कुछ छोटे छोटे दुख अपने कुछ दुख अपने अज़ीज़ों केइन से ही जीवन बनता है सो जीवन बन जाएगा
आरिज़ों पर ये ढलकते हुए आँसू तौबाहम ने शोलों पे मचलती हुई शबनम देखी
ख़ुदा ने गढ़ तो दिया आलम-ए-वजूद मगरसजावटों की बिना औरतों की ज़ात हुई
आरज़ूओं ने कई फूल चुने थे लेकिनज़िंदगी ख़ार-बदामाँ है इसे क्या कहिए
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