aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aatish-o-uud"
हर शब शब-ए-बरात है हर रोज़ रोज़-ए-ईदसोता हूँ हाथ गर्दन-ए-मीना में डाल के
ज़बाँ पे शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-ख़ुदा क्यूँ है?दुआ तो माँगिये 'आतिश' कभी दुआ की तरह
ख़ूगर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार था इतना 'आतिश'दर्द भी माँगा तो पहले से सिवा माँगा था
आतिश-ए-मस्त जो मिल जाए तो पूछूँ उस सेतू ने कैफ़िय्यत उठाई है ख़राबात में क्या
बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ जड़ने से नगों के कम नहींशाइ'री भी काम है 'आतिश' मुरस्सा-साज़ का
कुफ़्र ओ इस्लाम की कुछ क़ैद नहीं ऐ 'आतिश'शैख़ हो या कि बरहमन हो पर इंसाँ होवे
उस बला-ए-जाँ से 'आतिश' देखिए क्यूँकर बनेदिल सिवा शीशे से नाज़ुक दिल से नाज़ुक ख़ू-ए-दोस्त
वही पस्ती ओ बुलंदी है ज़मीं की आतिशवही गर्दिश में शब ओ रोज़ हैं अफ़्लाक हनूज़
ईद-ए-नौ-रोज़ दिल अपना भी कभी ख़ुश करतेयार आग़ोश में ख़ुर्शीद हमल में होता
निकले हैं घर से देखने को लोग माह-ए-ईदऔर देखते हैं अबरू-ए-ख़मदार की तरफ़
ऐ सबा चलती है क्यूँ इस दर्जा इतराई हुईउड़ गई काफ़ूर बन बन कर हया आई हुई
ये ताज के साए में ज़र-ओ-सीम के ख़िर्मनक्यूँ आतिश-ए-कश्कोल-ए-गदा से नहीं डरते
सुब्ह-दम सह्न-ए-गुलिस्ताँ में सबा के झोंकेआतिश-ए-दर्द-ए-मोहब्बत को हवा देते हैं
किसी हसीं से लिपटना अशद ज़रूरी हैहिलाल-ए-ईद तो कोई सुबूत-ए-ईद नहीं
आतिश-ए-इश्क़ वो जहन्नम हैजिस में फ़िरदौस के नज़ारे हैं
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईदऐ काश मेरे पास तू आता बजाए ईद
क्यूँ मुझ को नज़्र-ए-आतिश-ए-एहसास कर दियाक्यूँ जान डाल कर मिरी मिट्टी ख़राब की
क्या लुत्फ़-ए-ईद है जो अगर तुम से दूर होंगुज़रेगा रोज़-ए-ईद तसव्वुर में आप के
लम्हा-ए-इमकान को पहलू बदलते देखनाआतिश-ए-बे-रंग में ख़ुद को पिघलते देखना
न पूछ शे'र है क्या चीज़ मुझ से ऐ हमदममिज़ाज-ए-आतिश-ए-सोज़ाँ लताफ़त-ए-शबनम
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