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शेर
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
जो अज़-ख़ुद-रफ़्ता है गुमराह है वो रहनुमा मेरा
जो इक आलम से है बेगाना है वो आश्ना मेरा
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
अजब मुश्किल है क्या कहिए बग़ैर-अज़-जान देने के
कोई नक़्शा नज़र आता नहीं आसान मिलने का
नज़ीर अकबराबादी
शेर
आज कम-अज़-कम ख़्वाबों ही में मिल के पी लेते हैं, कल
शायद ख़्वाबों में भी ख़ाली पैमाने टकराएँ लोग
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
शेर
अज़-बस-कि तू प्यारा है मुझे तेरे सिवा यार
सौगंद में खाता नहीं वल्लाह किसी की