aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ कोमैं ने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र देहाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
किसी को कैसे बताएँ ज़रूरतें अपनीमदद मिले न मिले आबरू तो जाती है
ज़िंदगी इक आँसुओं का जाम थापी गए कुछ और कुछ छलका गए
एक आँसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म मेंबूँद भर पानी से सारी आबरू पानी हुई
चमन में रखते हैं काँटे भी इक मक़ाम ऐ दोस्तफ़क़त गुलों से ही गुलशन की आबरू तो नहीं
मैं उस को आँसुओं से लिख रहा हूँकि मेरे ब'अद कोई पढ़ न पाए
न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनरपड़ी अपनी बुराइयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा
मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछोमिरा मज्लिसी तबस्सुम मिरा तर्जुमाँ नहीं है
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिनबहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
चुप-चाप अपनी आग में जलते रहो 'फ़राज़'दुनिया तो अर्ज़-ए-हाल से बे-आबरू करे
जो चाहिए सो माँगिये अल्लाह से 'अमीर'उस दर पे आबरू नहीं जाती सवाल से
आप ने औरों से कहा सब कुछहम से भी कुछ कभी कहीं कहते
पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रातयूँ बूँद बूँद उतरी हमारे घरों में रात
इक तुझ को देखने के लिए बज़्म में मुझेऔरों की सम्त मस्लहतन देखना पड़ा
दूर ख़ामोश बैठा रहता हूँइस तरह हाल दिल का कहता हूँ
ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारेसो जाए भी तो पहर दो पहर को जाता है
हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतरातावगरना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है
अपने किस काम में लाएगा बताता भी नहींहम को औरों पे गँवाना भी नहीं चाहता है
अजनबी रास्तों पर भटकते रहेआरज़ूओं का इक क़ाफ़िला और मैं
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