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शेर
ये अजीब माजरा है कि ब-रोज़-ए-ईद-ए-क़ुर्बां
वही ज़ब्ह भी करे है वही ले सवाब उल्टा
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
शेर
इस तरह निगाहें मत फेरो, ऐसा न हो धड़कन रुक जाए
सीने में कोई पत्थर तो नहीं एहसास का मारा, दिल ही तो है
साहिर लुधियानवी
शेर
अल्लाह रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बाद-ए-मर्ग
हिलते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद मिरे अंदर कफ़न के पाँव
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
कोई बतलाता नहीं आलम में उस के घर की राह
मारता फिरता हूँ अपने सर को दीवारों से आज