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शेर
वो जो रात मुझ को बड़े अदब से सलाम कर के चला गया
उसे क्या ख़बर मिरे दिल में भी कभी आरज़ू-ए-गुनाह थी
अहमद मुश्ताक़
शेर
ताज़ीर-ए-जुर्म-ए-इश्क़ है बे-सर्फ़ा मोहतसिब
बढ़ता है और ज़ौक़-ए-गुनह याँ सज़ा के ब'अद
अल्ताफ़ हुसैन हाली
शेर
हरगिज़ न मुझ से साफ़ हुआ यार या नसीब
ख़त भी लिखा जो उस ने तो ख़त्त-ए-ग़ुबार में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
नाचार है दिल ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर के आगे
दीवाने का क्या चलता है ज़ंजीर के आगे