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शेर
आरिफ़ जलाली
शेर
सालिक है गरचे सैर-ए-मक़ामात-ए-दिल-फ़रेब
जो रुक गए यहाँ वो मक़ाम-ए-ख़तर में हैं
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
शेर
ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है
कि जितना खींचता हूँ और खिंचता जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो
फूल को खिलने से मतलब है चमन कोई भी हो
बासिर सुल्तान काज़मी
शेर
कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो कि फ़साना-ए-मोहब्बत
मैं उसे सुना के रोऊँ वो मुझे सुना के रोए