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शेर
मुँह ज़र्द ओ आह-ए-सर्द ओ लब-ए-ख़ुश्क ओ चश्म-ए-तर
सच्ची जो दिल-लगी है तो क्या क्या गवाह है
नज़ीर अकबराबादी
शेर
होंटों तक आते आते हुई वो भी सर्द आह
इक आह-ए-सर्द थी जो मिरी ग़म-गुसार-ए-दिल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
अब्दुल अहद साज़
शेर
किस दर्जा मुनाफ़िक़ हैं सब अहल-ए-हवस 'साक़िब'
अंदर से तो पत्थर हैं और लगते हैं पानी से
आसिफ़ साक़िब
शेर
मंज़िल-ए-इबरत है दुनिया अहल-ए-दुनिया शाद हैं
ऐसी दिल-जमई से होती है परेशानी मुझे
चकबस्त बृज नारायण
शेर
अहल-ए-हुनर के दिल में धड़कते हैं सब के दिल
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है