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शेर
जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए
वो नशात-ए-आह-ए-सहर गई वो वक़ार-ए-दस्त-ए-दुआ गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
मुँह ज़र्द ओ आह-ए-सर्द ओ लब-ए-ख़ुश्क ओ चश्म-ए-तर
सच्ची जो दिल-लगी है तो क्या क्या गवाह है
नज़ीर अकबराबादी
शेर
फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से
हर आह-ए-दिल के साथ इक अरमाँ निकल गया
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
शेर
होंटों तक आते आते हुई वो भी सर्द आह
इक आह-ए-सर्द थी जो मिरी ग़म-गुसार-ए-दिल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
बीच में है मेरे उस के तू ही ऐ आह-ए-हज़ीं
सुल्ह क्यूँकर होवे जब तक दरमियाँ कोई न हो
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
शेर
ता-सुब्ह मिरी आह-ए-जहाँ-सोज़ से कल रात
क्या गुम्बद-ए-अफ़्लाक ये हम्माम सा था गर्म