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शेर
अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-तअल्लुक़ कर लो पर इक बात कहें
कल तुम इन को याद करोगे कल तुम इन्हें पुकारोगे
इब्न-ए-इंशा
शेर
मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता
उड़ा ही लेता दस्त-ए-कातिब-ए-तक़दीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
अहल-ए-दुनिया बावले हैं बावलों की तू न सुन
नींद उड़ाता हो जो अफ़्साना उस अफ़्साना से भाग
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है
अगर तदबीर हम करते हैं तो तक़दीर हँसती है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
अहल-ए-ज़र ने देख कर कम-ज़रफ़ी-ए-अहल-ए-क़लम
हिर्स-ए-ज़र के हर तराज़ू में सुख़न-वर रख दिए
बख़्श लाइलपूरी
शेर
अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल
कौन तिरी तरह 'हफ़ीज़' दर्द के गीत गा सके
हफ़ीज़ जालंधरी
शेर
खज़ाना-ए-ज़र-ओ-गौहर पे ख़ाक डाल के रख
हम अहल-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत हैं दिल निकाल के रख