aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ain-vast"
ओ वस्ल में मुँह छुपाने वालेये भी कोई वक़्त है हया का
कलेजा रह गया उस वक़्त फट करकहा जब अलविदा उस ने पलट कर
इस वक़्त वहाँ कौन धुआँ देखने जाएअख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगी थी
ज़िंदगी कशमकश-ए-वक़्त में गुज़री अपनीदिन ने जीने न दिया रात ने मरने न दिया
सूरत-ए-वस्ल निकलती किसी तदबीर के साथमेरी तस्वीर ही खिंचती तिरी तस्वीर के साथ
किस से अब आरज़ू-ए-वस्ल करेंइस ख़राबे में कोई मर्द कहाँ
दी शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ पिछली रातहाए कम-बख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया
उस वक़्त का हिसाब क्या दूँजो तेरे बग़ैर कट गया है
अजब था नश्शा-ए-वारफ़तगी-ए-वस्ल उसेवो ताज़ा-दम रहा मुझ को निढाल कर के भी
हो कभी तो शराब-ए-वस्ल नसीबपिए जाऊँ मैं ख़ून ही कब तक
हम किसी और वक़्त के हैं असीरसुब्ह के शाम के रहे ही नहीं
यकसाँ हैं फ़िराक़-ए-वस्ल दोनोंये मरहले एक से कड़े हैं
विदाअ ओ वस्ल में हैं लज़्ज़तें जुदागानाहज़ार बार तू जा सद-हज़ार बार आ जा
शब-ए-वस्ल घबरा के कहना किसी काबता दीजिए हम से क्या कीजिएगा
बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दोमुझ को दम भर के लिए ग़ैर की क़िस्मत दे दो
मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा न बनेतू समझता है मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं
शब-ए-वस्ल की क्या कहूँ दास्ताँज़बाँ थक गई गुफ़्तुगू रह गई
शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ थाबग़ल में सनम था ख़ुदा मेहरबाँ था
हिज्र को हौसला और वस्ल को फ़ुर्सत दरकारइक मोहब्बत के लिए एक जवानी कम है
मक़्तल-ए-वक़्त में ख़ामोश गवाही की तरहदिल भी काम आया है गुमनाम सिपाही की तरह
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