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शेर
ऐश-ए-जहाँ बग़ल में तुम्हारी सब आ रहा
दिल ही दिया जो तुम को तो फिर और क्या रहा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
बसंत आई है मौज-ए-रंग-ए-गुल है जोश-ए-सहबा है
ख़ुदा के फ़ज़्ल से ऐश-ओ-तरब की अब कमी क्या है