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शेर
लूटा जो उस ने मुझ को तो आबाद भी किया
इक शख़्स रहज़नी में भी रहबर लगा मुझे
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
वही मायूसी का आलम वही नौमीदी का रंग
ज़िंदगी भी किसी मुफ़्लिस की दुआ हो जैसे
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
अजीब उस से तअ'ल्लुक़ है क्या कहा जाए
कुछ ऐसी सुल्ह नहीं है कुछ ऐसी जंग नहीं
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
कभी ख़ुशबू कभी साया कभी पैकर बन कर
सभी हिज्रों में विसालों में मिरे पास रहो
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
इसी तलाश में पहुँचा हूँ इश्क़ तक तेरे
कि इस हवाले से पा जाऊँ मैं दवाम अपना
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
मैं तुझ को भूल न पाऊँ यही सज़ा है मिरी
मैं अपने-आप से लेता हूँ इंतिक़ाम अपना
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
मेरे तसव्वुर ने बख़्शी है तन्हाई को भी इक महफ़िल
तू महफ़िल महफ़िल तन्हा हो ये भी तो हो सकता है
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
वो एक लम्हा मुझे क्यूँ सता रहा है कि जो
नहीं के बा'द मगर उस की हाँ से पहले था
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
ये इक सवाल है शिकवा नहीं गिला भी नहीं
मिरे ख़ुदा तिरा लुत्फ़-ओ-अता है किस के लिए
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
वही गुमाँ है जो उस मेहरबाँ से पहले था
वहीं से फिर ये सफ़र है जहाँ से पहले था
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
धनक की तरह निखरता है शब को ख़्वाबों में
वही जो दिन को मिरी चश्म-ए-तर में रहता है
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
लाओ इक लम्हे को अपने-आप में डूब के देख आऊँ
ख़ुद मुझ में ही मेरा ख़ुदा हो ये भी तो हो सकता है
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
ग़म-ए-अय्याम पे यूँ ख़ुश हैं तिरे दीवाने
ग़म-ए-अय्याम भी इक तेरी अदा हो जैसे
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
तुम्हें नहीं हो अगर आज गोश-बर-आवाज़
ये मेरी फ़िक्र ये मेरी नवा है किस के लिए
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
वो सुन रहा है मिरी बे-ज़बानियों की ज़बाँ
जो हर्फ़-ओ-सौत-ओ-सदा-ओ-ज़बाँ से पहले था
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
जब आ रही हैं बहारें लिए पयाम-ए-जुनूँ
ये पैरहन को मिरे हाजत-ए-रफ़ू क्या थी
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
हर्फ़-ए-दुश्नाम से यूँ उस ने नवाज़ा हम को
ये मलामत ही मोहब्बत का सिला हो जैसे
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
जो बार-ए-दोश रहा सर वो कब था शोरीदा
बहा न जिस से लहू वो रग-ए-गुलू क्या थी