aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aks-e-badan"
माना कि रंग रंग तिरा पैरहन भी हैपर इस में कुछ करिश्मा-ए-अक्स-ए-बदन भी है
है नगीना हर एक उ'ज़्व-ए-बदनतुम को क्या एहतियाज ज़ेवर की
अक्स-ए-ज़ुल्फ़-ए-रवाँ नहीं जातादिल से ग़म का धुआँ नहीं जाता
अक्स-ए-ख़याल-ए-यार सँवारा करेंगे हमशीशे में आइने को उतारा करेंगे हम
सुबू में अक्स-ए-रुख़-ए-माहताब देखते हैंशराब पीते नहीं हम शराब देखते हैं
अक्स-ए-याद-ए-यार को धुँदला किया हैमैं ने ख़ुद को जान कर तन्हा किया है
है मेरी आँखों में अक्स-ए-नविश्ता-ए-दीवारसमझ सको तो मिरा नुत्क़-ए-बे-ए-ज़बाँ ले लो
लगाईं ताक के उस मस्त ने जो तलवारेंदहान-ए-ज़ख़्म-ए-बदन से भी आए बू-ए-शराब
तेरा ही रक़्स सिलसिला-ए-अक्स-ए-ख़्वाब हैइस अश्क-ए-नीम-शब से शब-ए-माहताब तक
ख़ाक-ए-बदन तिरी सब पामाल होगी इक दिनरेग-ए-रवाँ बनेगा आख़िर को ये जज़ीरा
उस गुल-बदन की बू-ए-बदन कुछ न पूछिएबंद-ए-क़बा जो खोल दिए घर महक गया
तू भी जैसे बदल सा जाता हैअक्स-ए-दीवार के बदलते ही
वाह क्या इस गुल-बदन का शोख़ है रंग-ए-बदनजामा-ए-आबी अगर पहना गुलाबी हो गया
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोईऔर बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई
वो आइना-तन आईना फिर किस लिए देखेजो देख ले मुँह अपना हर इक उ'ज़्व-ए-बदन में
झील में चाँदनी का अक्स-ए-जमीलया तिरी याद दिल से गुज़री है
रूह-ओ-बदन में जारी है इक मा'रका-ए-ख़ूँ सदियों सेएक हवाला मिट्टी का है एक हवाला पानी का
सिर्फ़ चेहरा ही नज़र आता है आईने मेंअक्स-ए-आईना नहीं दिखता है आईने में
आशियाँ जलने पे बुनियाद नई पड़ती हैअक्स-ए-तख़रीब को आईना-ए-तामीर कहो
पाया न कुछ ख़ला के सिवा अक्स-ए-हैरतीगुज़रा था आर-पार हज़ार आइने के साथ
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