aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aks-e-gunah"
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिनदेखे हैं हम ने हौसले परवरदिगार के
अक्स-ए-ज़ुल्फ़-ए-रवाँ नहीं जातादिल से ग़म का धुआँ नहीं जाता
सैकड़ों मन से भी ज़ंजीर मिरी भारी हैवाह क्या शौकत-ए-सामान-ए-गुनह-गारी है
अक्स-ए-ख़याल-ए-यार सँवारा करेंगे हमशीशे में आइने को उतारा करेंगे हम
सुबू में अक्स-ए-रुख़-ए-माहताब देखते हैंशराब पीते नहीं हम शराब देखते हैं
अक्स-ए-याद-ए-यार को धुँदला किया हैमैं ने ख़ुद को जान कर तन्हा किया है
तर्ग़ीब-ए-गुनाह लहज़ा लहज़ाअब रात जवान हो गई है
है मेरी आँखों में अक्स-ए-नविश्ता-ए-दीवारसमझ सको तो मिरा नुत्क़-ए-बे-ए-ज़बाँ ले लो
'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसीपी लो और दहशत-ए-गुनाह गई
माना कि रंग रंग तिरा पैरहन भी हैपर इस में कुछ करिश्मा-ए-अक्स-ए-बदन भी है
तेरा ही रक़्स सिलसिला-ए-अक्स-ए-ख़्वाब हैइस अश्क-ए-नीम-शब से शब-ए-माहताब तक
दुबकी हुई थी गुरबा-सिफ़त ख़्वाहिश-ए-गुनाहचुमकारने से फूल गई शेर हो गई
ख़ामोश हो गईं जो उमंगें शबाब कीफिर जुरअत-ए-गुनाह न की हम भी चुप रहे
मीज़ाँ खड़ी हुई मिरे आगे न रोज़-ए-हश्रदबना पड़ा उसे मिरे बार-ए-गुनाह से
देखा क़द-ए-गुनाह पे जब इस को मुल्तफ़ितबढ़ कर हद-ए-निगाह लगी उस को ढाँपने
तू भी जैसे बदल सा जाता हैअक्स-ए-दीवार के बदलते ही
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोईऔर बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई
ख़ूब ताज़ीर-ए-गुनाह-ए-इश्क़ हैनक़्द-ए-जाँ लेना यहाँ जुर्माना है
झील में चाँदनी का अक्स-ए-जमीलया तिरी याद दिल से गुज़री है
सिर्फ़ चेहरा ही नज़र आता है आईने मेंअक्स-ए-आईना नहीं दिखता है आईने में
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