aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "amiinii"
ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम करआस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है
ना-उमीदी बढ़ गई है इस क़दरआरज़ू की आरज़ू होने लगी
माँगने वालों को क्या इज़्ज़त ओ रुस्वाई सेदेने वालों की अमीरी का भरम खुलता है
वो उर्दू का मुसाफ़िर है यही पहचान है उस कीजिधर से भी गुज़रता है सलीक़ा छोड़ जाता है
ग़रीबी अमीरी है क़िस्मत का सौदामिलो आदमी की तरह आदमी से
मैं जानता हूँ मिरे बा'द ख़ूब रोएगारवाना कर तो रहा है वो हँसते हँसते मुझे
है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती न बयाबाँआँखों में कोई ख़्वाब दिखाई नहीं देता
आस क्या अब तो उमीद-ए-नाउमीदी भी नहींकौन दे मुझ को तसल्ली कौन बहलाए मुझे
ख़ूँ शहीदान-ए-वतन का रंग ला कर ही रहाआज ये जन्नत-निशाँ हिन्दोस्ताँ आज़ाद है
बे-क़रारी का सबब हर काम की उम्मीद हैना-उमीदी हो तो फिर आराम की उम्मीद है
ना-उमीदी है बुरी चीज़ मगरएक तस्कीन सी हो जाती है
मुनहसिर मरने पे हो जिस की उमीदना-उमीदी उस की देखा चाहिए
सँभलने दे मुझे ऐ ना-उमीदी क्या क़यामत हैकि दामान-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाए है मुझ से
इक चाँद है आवारा-ओ-बेताब ओ फ़लक-ताबइक चाँद है आसूदगी-ए-हिज्र का मारा
लज़्ज़त-ए-दीद ख़ुदा जाने कहाँ ले जाएआँख होती है तो होता नहीं क़ाबू दिल पर
हम भी पत्थर तुम भी पत्थर सब पत्थर टकराओहम भी टूटें तुम भी टूटो सब टूटें आमीन
तमाम शहर गले लग गया तो क्या हासिलवो हम को मुँह जो लगाए तो ईद हो जाए
अल्लाह-रे सनम ये तिरी ख़ुद-नुमाईयाँइस हुस्न-ए-चंद-रोज़ा पे इतना ग़ुरूर हो
ना-उमीदी हर्फ़-ए-तोहमत ही सही क्या कीजिएतुम क़रीब आते नहीं हो और ख़ुदा मिलता नहीं
तुम से कहा था बाम पे मत जाना आज शामदेखा नाँ सारे शहर की तो ईद हो गई
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