aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "andoh"
चाहोगे तो क्या है न निबाहोगे तो क्या है बहुत इतराओ न दिल दे के ये किस काम का दिलहै ग़म-ओ-अंदोह का मारा अभी चाहूँ तो मैं रख दूँ इसे तलवों से मसल कर अभी मुँह
अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहोजो मय ओ नग़्मा को अंदोह-रुबा कहते हैं
मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँवो सितमगर मिरे मरने पे भी राज़ी न हुआ
नावक-ए-ज़ुल्म उठा दशना-ए-अंदोह सँभाललुत्फ़ के ख़ंजर-ए-बे-नाम से मत मार मुझे
इक आबला था सो भी गया ख़ार-ए-ग़म से फटतेरी गिरह में क्या दिल-ए-अंदोह-गीं रहा
एक बस्ती थी हुई वक़्त के अंदोह में गुमचाहने वाले बहुत अपने पुराने थे उधर
न रक्खा जग में रस्म-ए-दोस्ती अंदोह-रोज़ी नेमगर ज़ानू से अब बाक़ी रहा है रब्त-ए-पेशानी
ग़म-ओ-अंदोह का लश्कर भी चला आता हैएक घोड़-दौड़ सी है उम्र-ए-गुरेज़ाँ के क़रीब
होंटों पे तबस्सुम का लबादा तो नहीं थाऐ दिल सम-ए-अंदोह ज़ियादा तो नहीं था
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