aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "anjaam-e-amal"
यहाँ कोताही-ए-ज़ौक़-ए-अमल है ख़ुद गिरफ़्तारीजहाँ बाज़ू सिमटते हैं वहीं सय्याद होता है
मुस्तइद हूँ तिरे ज़ुल्फ़ों की सियाही ले करसफ़्हा-ए-नामा-ए-आमाल कूँ काला करने
पूछा जो मैं ने यार से अंजाम-ए-सोज़-ए-इश्क़शोख़ी से इक चराग़ को उस ने बुझा दिया
हर क़दम पर है एहतिसाब-ए-अमलइक क़यामत पे इंहिसार नहीं
मौत अंजाम-ए-ज़िंदगी है मगरलोग मरते हैं ज़िंदगी के लिए
हुस्न के नाज़ उठाने के सिवाहम से और हुस्न-ए-अमल क्या होगा
हम अपनी नेकी समझते तो हैं तुझे लेकिनशुमार नामा-ए-आमाल में नहीं करते
तेरा मरना इश्क़ का आग़ाज़ थामौत पर होगा मिरे अंजाम-ए-इश्क़
हुस्न-ए-अमल में बरकतें होती हैं बे-शुमारपत्थर भी तोड़िए तो सलीक़े से तोड़िए
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत कीमरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई
जुर्म इतने कर चला हूँ हश्र तक लिक्खेंगे रोज़कातिब-ए-आमाल पाएँगे न फ़ुर्सत काम से
थे यहाँ सारे अमल रद्द-ए-अमल के मुहताजज़िंदगी भी हमें दरकार थी मरने के लिए
जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देखहुक्म होता है कि अपना नामा-ए-आमाल देख
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बतलेते न कभी भूल के हम नाम-ए-मोहब्बत
ऐ फ़लक कुछ तो असर हुस्न-ए-अमल में होताशीशा इक रोज़ तो वाइज़ के बग़ल में होता
बातों से सिवा होती है कुछ वहशत-ए-दिल औरअहबाब परेशाँ हैं मिरे तर्ज़-ए-अमल से
हुस्न-ए-अमल पे अपने न भूल इस क़दर कि शैख़वाँ के मुआ'मले से किसी को ख़बर नहीं
मुझ को मालूम है अंजाम-ए-मोहब्बत क्या हैएक दिन मौत की उम्मीद पे जीना होगा
उसे ख़बर है कि अंजाम-ए-वस्ल क्या होगावो क़ुर्बतों की तपिश फ़ासले में रखती है
गर कुछ भी ख़बर होती अंजाम-ए-गुलिस्ताँ कीहम अपने नशेमन को ख़ुद आग लगा देते
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