aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "anjum"
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब थावो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया हैआज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैंकि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहींयूँ देखती है जैसे मुझे जानती नहीं
धूप निकली है बारिशों के ब'अदवो अभी रो के मुस्कुराए हैं
तुम अकेले में मिले ही नहीं वर्ना तुम कोऔर ही तरह के इक शख़्स से मिलवाता मैं
कैसा फ़िराक़ कैसी जुदाई कहाँ का हिज्रवो जाएगा अगर तो ख़यालों में आएगा
चराग़ चाँद शफ़क़ शाम फूल झील सबाचुराईं सब ने ही कुछ कुछ शबाहतें तेरी
हम से पूछो मिज़ाज बारिश काहम जो कच्चे मकान वाले हैं
इतना बे-ताब न हो मुझ से बिछड़ने के लिएतुझ को आँखों से नहीं दिल से जुदा करना है
सच के सौदे में न पड़ना कि ख़सारा होगाजो हुआ हाल हमारा सो तुम्हारा होगा
कोई तोहमत हो मिरे नाम चली आती हैजैसे बाज़ार में हर घर से गली आती है
चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ाएँन तुम याद आओ न हम याद आएँ
दिल से उठता है सुब्ह-ओ-शाम धुआँकोई रहता है इस मकाँ में अभी
रौशनी भी नहीं हवा भी नहींमाँ का नेमुल-बदल ख़ुदा भी नहीं
कभी कभी तो ये दिल में सवाल उठता हैकि इस जुदाई में क्या उस ने पा लिया होगा
माँ मुझे देख के नाराज़ न हो जाए कहींसर पे आँचल नहीं होता है तो डर होता है
इंसान की निय्यत का भरोसा नहीं कोईमिलते हो तो इस बात को इम्कान में रखना
तुझ को दुनिया के साथ चलना हैतू मिरे साथ चल न पाएगा
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