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शेर
होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा
ख़ुश्क-ओ-तर सारे जहाँ का लब-ब-लब साहिल में है
आरज़ू लखनवी
शेर
मैं वो गर्दन-ज़दनी हूँ कि तमाशे को मिरे
शहर के लोग खड़े हैं ब-सर-ए-बाम तमाम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
उठा जो मीना-ब-दस्त साक़ी रही न कुछ ताब-ए-ज़ब्त बाक़ी
तमाम मय-कश पुकार उठ्ठे यहाँ से पहले यहाँ से पहले
शकील बदायूनी
शेर
हुज़ूर-ए-दुख़्तर-ए-रज़ हाथ पाँव काँपते हैं
तमाम मस्तों को रअशा है रू-ब-रू-ए-शराब