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शेर
जाँ-ब-लब लम्हा-ए-तस्कीं मिरी क़िस्मत है 'शमीम'
बे-ख़ुदी फिर मुझे दीवाना बनाती क्यूँ है
शख़ावत शमीम
शेर
ख़्वाब में बोसा लिया था रात ब-लब-ए-नाज़की
सुब्ह दम देखा तो उस के होंठ पे बुतख़ाला था
ममनून निज़ामुद्दीन
शेर
मैं जाँ-ब-लब हूँ ऐ तक़दीर तेरे हाथों से
कि तेरे आगे मिरी कुछ न चल सकी तदबीर
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
शकील बदायूनी
शेर
कब पिलावेगा तू ऐ साक़ी मुझे जाम-ए-शराब
जाँ-ब-लब हूँ आरज़ू में मय की पैमाने की तरह
ताबाँ अब्दुल हई
शेर
होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा
ख़ुश्क-ओ-तर सारे जहाँ का लब-ब-लब साहिल में है
आरज़ू लखनवी
शेर
उस लब-ए-बाम से ऐ सरसर-ए-फुर्क़त तू बता
मिस्ल तिनके के मिरा ये तन-ए-लाग़र फेंका
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
ब-वक़्त-ए-बोसा-ए-लब काश ये दिल कामराँ होता
ज़बाँ उस बद-ज़बाँ की मुँह में और मैं ज़बाँ होता
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
बिस्मिलों से बोसा-ए-लब का जो वा'दा हो गया
ख़ुद-ब-ख़ुद हर ज़ख़्म का अंगूर मीठा हो गया