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शेर
रंग-ओ-बू के पर्दे में कौन ये ख़िरामाँ है
हर नफ़स मोअत्तर है हर नज़र ग़ज़ल-ख़्वाँ है
राज़ मुरादाबादी
शेर
चमन के रंग-ओ-बू ने इस क़दर धोका दिया मुझ को
कि मैं ने शौक़-ए-गुल-बोसी में काँटों पर ज़बाँ रख दी
अख़्तर होशियारपुरी
शेर
यूँ बढ़ी साअत-ब-साअत लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-फ़िराक़
रफ़्ता रफ़्ता मैं ने ख़ुद को दुश्मन-ए-जाँ कर दिया