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शेर
सहर के साथ होगा चाक मेरा दामन-ए-हस्ती
ब-रंग-ए-शम्अ बज़्म-ए-दहर में मेहमाँ हूँ शब भर का
ताैफ़ीक़ हैदराबादी
शेर
हर सम्त सब्ज़ा-ज़ार बिछाना बसंत का
फूलों में रंग-ओ-बू को लुटाना बसंत का
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
रंग-ओ-बू के पर्दे में कौन ये ख़िरामाँ है
हर नफ़स मोअत्तर है हर नज़र ग़ज़ल-ख़्वाँ है
राज़ मुरादाबादी
शेर
चमन के रंग-ओ-बू ने इस क़दर धोका दिया मुझ को
कि मैं ने शौक़-ए-गुल-बोसी में काँटों पर ज़बाँ रख दी
अख़्तर होशियारपुरी
शेर
तिरे रंग-ओ-बू को भी देखते न ख़याल था न मजाल थी
जो सकत मिली तुझे देखने की तो रंग-ओ-बू से निकल गए
इदरीस आज़ाद
शेर
ज़ात-ए-ख़ाकी की तहों में ख़ुफ़्ता हैं अनवा'-ए-ख़ाक
रंगहा-ए-तह-ब-तह का पेच-ओ-ख़म कुछ और है