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शेर
उसी दिन से मुझे दोनों की बर्बादी का ख़तरा था
मुकम्मल हो चुके थे जिस घड़ी अर्ज़-ओ-समा बन कर
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
मुझ सा आशिक़ आप सा माशूक़ तब होवे नसीब
जब ख़ुदा इक दूसरा अर्ज़-ओ-समा पैदा करे
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
जन्नत-ए-सूफ़िया निसार दहर की मुश्त-ए-ख़ाक पर
आशिक़-ए-अर्ज़-ए-पाक को दावत-ए-ला-मकाँ न दे
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
न दुनिया बाइ'स-ए-ग़फ़लत न उक़्बा वज्ह-ए-हुश्यारी
रहे जो तुझ से ग़ाफ़िल हम उसे ग़ाफ़िल समझते हैं
अमजद नजमी
शेर
तवज्जोह चारा-गर की बाइस-ए-तकलीफ़ है 'बेख़ुद'
इज़ाफ़ा है मुसीबत में दवाओं का असर करना