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शेर
सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बा'द
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बा'द
सय्यद ग़ुलाम मोहम्मद मस्त कलकत्तवी
शेर
मोहब्बत अब नहीं होगी ये कुछ दिन ब'अद में होगी
गुज़र जाएँगे जब ये दिन ये उन की याद में होगी