aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "baar-haa"
बार-हा तू ने ख़्वाब दिखलाएबार-हा हम ने कर लिया है यक़ीं
बार-हा देखी हैं उन की रंजिशेंपर कुछ अब के सरगिरानी और है
तन्हाई-ए-फ़िराक़ में उम्मीद बार-हागुम हो गई सुकूत के हंगामा-ज़ार में
बार-हा यूँ भी हुआ तेरी मोहब्बत की क़समजान कर हम ने तुझे ख़ुद से ख़फ़ा रक्खा है
बार-हा ख़ुद पे मैं हैरान बहुत होता हूँकोई है मुझ में जो बिल्कुल ही जुदा है मुझ से
जब तलक शीशा रहा मैं बार-हा तोड़ा गयाबन गया पत्थर तो सब ने देवता माना मुझे
मैं अदम से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल बार-हामेरी आह-ए-आतिशीं से बाल-ए-अन्क़ा जल गया
मैं बार-हा तिरी यादों में इस तरह खोयाकि जैसे कोई नदी जंगलों में गुम हो जाए
दिल का लहू निगाह से टपका है बार-हाहम राह-ए-ग़म में ऐसी भी मंज़िल से आए हैं
बार-हा ये भी हुआ अंजुमन-ए-नाज़ से हमसूरत-ए-मौज उठे मिस्ल-ए-तलातुम आए
बार-हा हम ने उसे रो के कहा है साहिबदिन जुदाई के नहीं हम से गुज़ारे जाते
हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जाये मंज़र बार-हा देखा न जाए
जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ाबार-हा आज़मा के देख लिया
जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आएबार-हा दिल ने ये महसूस किया तुम आए
ज़िंदगी अपनी मुसलसल चाहतों का इक सफ़रइस सफ़र में बार-हा मिल कर बिछड़ जाता है वो
इस्तिख़ारे के लिए बाग़ में हम रिंदों नेबार-हा दाना-ए-अँगूर की की है तस्बीह
आप के बा'द हर घड़ी हम नेआप के साथ ही गुज़ारी है
न यही कि ज़ौक़-ए-नज़र मिरा सफ़-ए-गुल-रुख़ाँ से गुज़र गयामैं तिरी तलाश में बार-हा मह-ओ-कहकशाँ से गुज़र गया
मौत बर-हक़ है एक दिन लेकिननींद रातों को ख़ूब आती है
हिज्र का बाब ही काफ़ी था हमेंवस्ल का बाब नहीं देखा था
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