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शेर
सुना किस ने हाल मेरा कि जूँ अब्र वो न रोया
रखे है मगर ये क़िस्सा असर-ए-दुआ-ए-बाराँ
बन्द्र इब्न-ए-राक़िम
शेर
की दिल ने दिल-बरान-ए-जहाँ की बहुत तलाश
कुइ दिल-रुबा मिला है न दिल-ख़्वाह क्या करे
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
शेर
वो अब क्या ख़ाक आए हाए क़िस्मत में तरसना था
तुझे ऐ अब्र-ए-रहमत आज ही इतना बरसना था
कैफ़ी हैदराबादी
शेर
जो ठोकर ही नहीं खाते वो सब कुछ हैं मगर वाइज़
वो जिन को दस्त-ए-रहमत ख़ुद सँभाले और होते हैं
हरी चंद अख़्तर
शेर
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
शेर
ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को
सो मैं कुछ ग़म बरा-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब उठा लाई
हुमैरा राहत
शेर
तो भी उस तक है रसाई मुझे एहसाँ दुश्वार
दाम लूँ गर पर-ए-जिब्रील बरा-ए-पर्वाज़